लंबी छुट्टियों के बाद
थमी हुई ज़िंदगी
थोड़ा अलसाते हुए
फिर पा लेती है
ऊर्जा
कहीं काम पर
जाते हुए
कहीं से
वापस आते हुए
हिस्सा बन कर
उसी भागदौड़ का
जिससे पाया था
थोड़ा सा अंतराल।
यह अंतराल
किसी को छोटा लगता है
किसी को खलता है
कोई इसे सुकून से जीता है
कोई हर पल गिनता है
पर
छुट्टियों के बाद का
हर पहला दिन
सबके लिए
थोड़ा अजीब सा होता है।
-यश ©
(10/11/2018)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-11-2018) को "छठ पूजा का महत्व" (चर्चा अंक-3152) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अन्तिम पंक्ति में अजीब को दुरुस्त कर लें। होता ऐसा ही है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर! सही कर लिया है।
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