चित्र सौजन्य- The Eyes of Children around the World |
बोझों से घिरे रह कर, न पढ़ना है न लिखना है।
दो जून की रोटी माँ बनाकर तभी खिलाएगी
जब शाम को चंद सिक्के उसके हाथों में रखना है।
ये न पूछना मुझसे कि, बनूँगा क्या बड़ा हो कर
मज़दूर हूँ मेरा काम तो औरों की तकदीर बदलना है।
है ये किस्मत मेरी कि मुझे इसी हाल में रहना है
क्या होगा कुछ कहने से बस ऐसे ही चलना है।
-यश©
02/12/2018
02/12/2018
सुन्दर अभिव्यक्ति
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