दिन-रात अंधेरे ही अंधेरे
कब उजाले से मुलाक़ात करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
कहीं उम्मीद की आस नहीं
खुद को ही सिर्फ निराश करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
कई अजूबों की इस बस्ती में
क्यूँ झूठी मस्ती को आबाद करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
खून से रंगे हुए इन चौराहों पर
मन के मत-भेद सरे-आम करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
दिन-रात अंधेरे ही अंधेरे
जाती साँसों पर विश्वास करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
-यश©
06/12/2018
कब उजाले से मुलाक़ात करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
कहीं उम्मीद की आस नहीं
खुद को ही सिर्फ निराश करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
कई अजूबों की इस बस्ती में
क्यूँ झूठी मस्ती को आबाद करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
खून से रंगे हुए इन चौराहों पर
मन के मत-भेद सरे-आम करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
दिन-रात अंधेरे ही अंधेरे
जाती साँसों पर विश्वास करूँ
कैसे खुशी की बात करूँ?
-यश©
06/12/2018
बहुत सुन्दर और सटीक रचना..
ReplyDeleteसुन्दर
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