05 January 2019

गुब्बारे ......

कितनी ही साँसों को
खुद में समाए
कितने ही गमों को भुलाए
किलकारियों पर इठलाते
आसमान में
उड़ते जाते
सबकी खुशियों की
डोर से बंधे
रंग-बिरंगे
गुब्बारे
बस मुस्कुराते ही रहते हैं
खामोशी से
कुछ-कुछ
कहते ही रहते हैं।
ये गुब्बारे
धर लेते हैं रूप
कभी उल्लास की
लड़ियों का
कभी दीवारों पर सज कर
बन जाते हैं गवाह
अनगिनत महफिलों का।
अपनी साँसों के टूटने तक
ये गुब्बारे
रखते हैं महफूज
और आबाद
उन क्षणिक स्वप्नों को
जो हम बुनते हैं
दिन के उजाले में
खुली आँखों से
आने वाले हर पल को
बस यूं ही
जी लेने के लिए।
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यश ©
05/01/2019




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