10 January 2019

क्यूँ भूलूँ , क्यूँ याद करूँ ......

क्यूँ भूलूँ , क्यूँ याद करूँ
क्यूँ किसी से फरियाद करूँ
आते जाते हर लम्हे को
ऐसे ही क्यूँ बर्बाद करूँ ?

माना कि कल तुम्हारा था
माना कि कल तुम्हारा है
आज के मायाजाल में क्यूँ
खुद पे अत्याचार करूँ ?

अपनी बातें कहूँ मैं किस से
परछाईं को भी नफरत मुझ से
ऐसे कैसे गहन तमस पर
क्यूँ पूरा विश्वास करूँ ?

क्यूँ भूलूँ , क्यूँ याद करूँ
क्यूँ किसी पर परिवाद करूँ
अपनी राह के हर काँटे का
ऐसे क्यूँ तिरस्कार करूँ ?

-यश©
10/01/2019

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना...

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  2. दिल की गहराई में जो छिपा है उसी शाश्वत को ही याद करना है, जिसे हम भूल गये हैं, वह अपने आप से भी अपना है जो हमसे असीम प्रेम करता है, उससे लगन लग जाती है तब सृष्टि अपना ही विस्तार जान पडती है...

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