12 May 2019

सारांश संभव नहीं .....



अक्सर हम
कहना चाहते हैं
कुछ बातें
सारांश में
जिनके आरंभ से
अन्त तक की दूरी
कम से कम हो
और
शब्दों में
पूरा दम हो
लेकिन
हो नहीं पाता संभव
सार
क्योंकि
बनते हुए विचार
जब छूते हैं
अपना चरम
तब तक
खिंच चुकी होती हैं
सैकड़ों लकीरें ....
पड़ चुके होते हैं ...
निशान
कुछ काटे हुए
कुछ मिटाए हुए
और
बढ़ चुके होते हैं फासले
समय के पन्ने पर
आरंभ से
अन्त के।

-यश ©
12/मई/2019

No comments:

Post a Comment