शीशे कारों के
चौराहों पर
कहीं साफ करते हुए
मन में घबराहट
चेहरे पर
मासूम मुस्कान
सहेजे हुए
किसी ढाबे या
दुकान पर
मजदूरी करते हुए
वो देखते हैं सपने
कि
किसी दिन
बहुत दूर होगी
ये लाचारी
बाप की बीमारी।
माँ-भाई-बहनों की
परवरिश का बोझ
अपने नाज़ुक से
कंधों पर लिए
समय से पहले ही
प्रौढ़ता के चरम को
हर कदम
अपने साथ लिए
इन्सानों की
चलती-फिरती
स्याह-सफ़ेद जिंदगी के
हर पहलू में
रचे बसे
स्वनामधन्य
ये 'छोटू'
सिर्फ 'छोटू' नहीं होते
घर के
बड़े होते हैं।
-यश ©
01/07/2019
चौराहों पर
कहीं साफ करते हुए
मन में घबराहट
चेहरे पर
मासूम मुस्कान
सहेजे हुए
किसी ढाबे या
दुकान पर
मजदूरी करते हुए
वो देखते हैं सपने
कि
किसी दिन
बहुत दूर होगी
ये लाचारी
बाप की बीमारी।
माँ-भाई-बहनों की
परवरिश का बोझ
अपने नाज़ुक से
कंधों पर लिए
समय से पहले ही
प्रौढ़ता के चरम को
हर कदम
अपने साथ लिए
इन्सानों की
चलती-फिरती
स्याह-सफ़ेद जिंदगी के
हर पहलू में
रचे बसे
स्वनामधन्य
ये 'छोटू'
सिर्फ 'छोटू' नहीं होते
घर के
बड़े होते हैं।
-यश ©
01/07/2019
मार्मिक रचना..
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