पूछता हूँ पता खुद से
खुद को बता नहीं पाता
जमाने की बातों में हरकदम
खुद को ही तलाशता।
क्या पाया क्या नहीं
अक्सर कुछ खोया ही है
बड़े दर्द हैं यहाँ
खुद को ढोया ही है।
न मालूम क्या लिखा है
हाथों की चंद लकीरों पर
जो दिखना है दिखेगा ही
समय की तसवीरों पर।
-यश ©
12/08/2019
खुद को बता नहीं पाता
जमाने की बातों में हरकदम
खुद को ही तलाशता।
क्या पाया क्या नहीं
अक्सर कुछ खोया ही है
बड़े दर्द हैं यहाँ
खुद को ढोया ही है।
न मालूम क्या लिखा है
हाथों की चंद लकीरों पर
जो दिखना है दिखेगा ही
समय की तसवीरों पर।
-यश ©
12/08/2019