12 August 2019

समय की तसवीरों पर....

पूछता हूँ पता खुद से
खुद को बता नहीं पाता
जमाने की बातों में हरकदम
खुद को ही तलाशता।

क्या पाया क्या नहीं
अक्सर कुछ खोया ही है
बड़े दर्द हैं यहाँ
खुद को ढोया ही है।

न मालूम क्या लिखा है
हाथों की चंद लकीरों पर
जो दिखना है दिखेगा ही
समय की तसवीरों पर।

-यश ©
12/08/2019

3 comments:

  1. सुन्दर सृजन ।

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. जगत एक दर्पण है यहाँ हर कोई खुद को ही देखता है..

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