यूं ही
समय के साथ चलते हुए
कभी-कभी ऐसा लगता है
मानो धारा
छोड़ देना चाहती हो
कहीं -किसी किनारे पर
अकेला
आत्ममंथन के
तिनके चुनने को।
वहाँ
उस किनारे पर
न जाने कितनी सदियों बाद
अनंत की परिक्रमा कर
गर मन चाहा
तो फिर लेने आएगी
खुद में समेटकर
बहा ले जाएगी
वही पुरानी
एक ही धारा।
लेकिन !
लेकिन तब तक
अपने अंतिम क्षण तक
क्या पार कर पाऊँगा ?
विश्राम की
अग्नि परीक्षा।
-यश ©
01/09/2019
समय के साथ चलते हुए
कभी-कभी ऐसा लगता है
मानो धारा
छोड़ देना चाहती हो
कहीं -किसी किनारे पर
अकेला
आत्ममंथन के
तिनके चुनने को।
वहाँ
उस किनारे पर
न जाने कितनी सदियों बाद
अनंत की परिक्रमा कर
गर मन चाहा
तो फिर लेने आएगी
खुद में समेटकर
बहा ले जाएगी
वही पुरानी
एक ही धारा।
लेकिन !
लेकिन तब तक
अपने अंतिम क्षण तक
क्या पार कर पाऊँगा ?
विश्राम की
अग्नि परीक्षा।
-यश ©
01/09/2019
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