06 September 2019

न जाने कौन से एहसानों में........?

वो....
बेसब्री से गिन रहे हैं दिन
मेरी तेरहवीं के इंतजार में
शायद आता है उनको मज़ा
मौत के ही व्यापार में।

हदें अपनी भूल कर
खुद हदों की उम्मीदों में
बेहयाई का ये आलम है
लकीरों के फकीरों में।

है ऐलान यह कि सब अच्छे हैं 
उनके ही गुलिस्तानो में
जाने क्या समझते हैं खुद को
न जाने कौन से एहसानों में?

-यश ©
05092019

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