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02 October 2019

रीत युग की बदल रही

श्रद्धा के दो फूल चढ़ाऊँ 
कैसे तुम्हारी समाधि पर? 
रीत युग की बदल रही 
अब खुद की बर्बादी पर। 

सोचता हूँ तुम जहाँ भी होगे 
परिवर्तन को तो देखते होगे 
इन्हीं दिनों के लिए दी कुर्बानी 
तुमने देश की आज़ादी पर ?

नोटों पर छप कर क्या होगा 
आदर्शों की नीलामी पर ?
'हे राम'! ही मालिक अहिंसा के 
सूने चरखे,खादी पर!

-यश ©
01/10/2019 

2 comments:

  1. बापू को विनम्र श्रद्धांजलि ! हकीकत बयान करती सुंदर रचना

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  2. बहुत सुन्दर

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