श्रद्धा के दो फूल चढ़ाऊँ
कैसे तुम्हारी समाधि पर?
रीत युग की बदल रही
अब खुद की बर्बादी पर।
सोचता हूँ तुम जहाँ भी होगे
परिवर्तन को तो देखते होगे
इन्हीं दिनों के लिए दी कुर्बानी
तुमने देश की आज़ादी पर ?
नोटों पर छप कर क्या होगा
आदर्शों की नीलामी पर ?
'हे राम'! ही मालिक अहिंसा के
सूने चरखे,खादी पर!
-यश ©
01/10/2019
बापू को विनम्र श्रद्धांजलि ! हकीकत बयान करती सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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