समय की तीखी
पैनी धार पर चलते हुए
अक्सर यही सोचा करता हूँ
कि क्या होता
अगर मैं
मैं न होता
कोई और होता ?
क्या होता
अगर मेरी ही तरह
मेरे ही जैसा
कोई और होता ?
खैर
अपने इसी अस्तित्व को
स्वीकारते हुए
अंधेरी गलियों में
भटकते हुए
तलाश रहा हूँ
खुद का सच
जो कहीं
दबा हुआ है
वक़्त के कत्लखाने में।
-यशवन्त माथुर ©
09/01/2020
पैनी धार पर चलते हुए
अक्सर यही सोचा करता हूँ
कि क्या होता
अगर मैं
मैं न होता
कोई और होता ?
क्या होता
अगर मेरी ही तरह
मेरे ही जैसा
कोई और होता ?
खैर
अपने इसी अस्तित्व को
स्वीकारते हुए
अंधेरी गलियों में
भटकते हुए
तलाश रहा हूँ
खुद का सच
जो कहीं
दबा हुआ है
वक़्त के कत्लखाने में।
-यशवन्त माथुर ©
09/01/2020
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन ..कुछ भी न घटता इस अस्तित्त्व का यदि हम न होते, जब हमारे होने से ही कुछ नहीं हो रहा है तो हमारे न होने पर भला क्या हो सकता था..जो भी हो सकता है वह हमें ही तय करना है, हमारे लिए
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