प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

09 January 2020

वक़्त के कत्लखाने में -17

समय की तीखी
पैनी धार पर चलते हुए
अक्सर यही सोचा करता हूँ
कि क्या होता
अगर मैं
मैं न होता
कोई और होता ?
क्या होता
अगर मेरी ही तरह
मेरे ही जैसा
कोई और होता ?
खैर
अपने इसी अस्तित्व को
स्वीकारते हुए
अंधेरी गलियों में
भटकते हुए
तलाश रहा हूँ
खुद का सच
जो कहीं
दबा हुआ है
वक़्त के कत्लखाने में।

-यशवन्त माथुर ©
09/01/2020

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. प्रभावशाली लेखन ..कुछ भी न घटता इस अस्तित्त्व का यदि हम न होते, जब हमारे होने से ही कुछ नहीं हो रहा है तो हमारे न होने पर भला क्या हो सकता था..जो भी हो सकता है वह हमें ही तय करना है, हमारे लिए

    ReplyDelete
+Get Now!