मौन समय की राहों में
हैं थोड़ी खुशियाँ, थोड़े गम
यायावर हैं हम।
इन राहों में थोड़ी मस्ती है
इन राहों में अपनी हस्ती है।
एक शांत सरल सी रेखा पर
इंसानों की अपनी बस्ती है।
है पूर्व यही-पश्चिम यही
उत्तर-दक्षिण का न कोई भ्रम
यायावर हैं हम।
हमने बस चलना सीखा है
वर्तमान में ढलना सीखा है।
और भविष्य के खातों में
स्वप्नों को लिखना सीखा है।
ऊबड़-खाबड़ इसी आज में
चुभते काँटे थोड़े कम
यायावर हैं हम।
-यशवन्त माथुर ©
04/02/2020
हैं थोड़ी खुशियाँ, थोड़े गम
यायावर हैं हम।
इन राहों में थोड़ी मस्ती है
इन राहों में अपनी हस्ती है।
एक शांत सरल सी रेखा पर
इंसानों की अपनी बस्ती है।
है पूर्व यही-पश्चिम यही
उत्तर-दक्षिण का न कोई भ्रम
यायावर हैं हम।
हमने बस चलना सीखा है
वर्तमान में ढलना सीखा है।
और भविष्य के खातों में
स्वप्नों को लिखना सीखा है।
ऊबड़-खाबड़ इसी आज में
चुभते काँटे थोड़े कम
यायावर हैं हम।
-यशवन्त माथुर ©
04/02/2020
वाह ! सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDelete