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21 March 2020

वो सबको खुश न रख पाता......

जलते जलते दीया भी
है अक्सर बुझ जाता ।
जो दबा उसके भीतर
समझ कोई न पाता। 

उसके तल पर घना अंधेरा
लौ भले ही दिखलाती सवेरा।
थोड़ा गिरती -थोड़ा उठती
करम अपना वो करती रहती।

व्यंग्य बाणों से बिधते रह कर
अपना जीवन जीता जाता ।
हर दीये का एक ही किस्सा
वो सबको खुश न रख पाता।

-यशवन्त माथुर ©
21/03/2020

4 comments:

  1. हम्म
    सही है।
    जो परिपाटी को नहीं पिटता वो दिया ही है।
    गजब की रचना।
    नई रचना सर्वोपरि?

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  2. मार्मिक रचना ! दीये का काम है प्रकाशित करना, शेष की वह परवाह ही नहीं करता

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  3. बहुत सुन्दर

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