ये समय का चक्र है
कि कोई मजे में है
दीवारों के भीतर
मखमली पर्दों
और आरामतलबी की
कैद में है।
ये बात और है
कि कुछ लोग
सड़क के किनारों पर
खाली पेट और
सहमी आँखों के साथ
ढलती दुनिया के
संभल जाने की
उम्मीद में हैं।
ये जो कुछ भी है
क्या है
इतनी समझ तो नहीं
असर इतना है
कि सब अपने घर में हैं।
-यशवन्त माथुर ©
25/03/2020
मार्मिक
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