कोरोना से कांप रहे शब्दकोश
बालेन्दु दाधीच
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोशों को अपनी शब्दावली में विशेष अपडेट के लिए बाध्य होना पड़ा है। वजह है- कोरोना वायरस से पैदा हुआ मौजूदा संकट। महामारी ने बहुत सारे नए शब्द पैदा किए हैं। ऐसे ही शब्द जब करीब-करीब हर इंसान के दैनिक जीवन में जगह बना लें तो उन तक पहुंचना शब्दकोशों की पहली जिम्मेदारी बन जाती है। नतीजतन मरियम वेब्स्टर शब्दकोश ने अपने इतिहास का सबसे तेज अपडेट किया है जबकि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी तिमाही अपडेट का इंतजार किए बिना कोरोना वायरस से जुड़े 14 नए शब्द जोड़े हैं।
दिलचस्प यह है कि दोनों के बीच बहुत कम शब्द साझा हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि हिंदी शब्दकोश निर्माता भी जल्दी ही इन हालात की सुध लेंगे। मरियम वेब्स्टर शब्दकोश में शब्दों को तेजी से शामिल किए जाने का यह दूसरा मामला है। पिछली बार ऐसा 1984 में हुआ था जब एड्स की बीमारी ने दुनिया को भयभीत कर दिया था। हालांकि किसी नए शब्द को इस डिक्शनरी में शामिल होने के लिए एक कड़े मापदंड से गुजरना पड़ता है। वह मापदंड है- उस शब्द का करीब एक दशक तक चलन में रहना। लेकिन जब एड्स की महामारी आई तो पूरी दुनिया में उसका बहुत ज्यादा खौफ था और इस सूचना को विश्व स्तर पर फैलाना भी बहुत ज्यादा जरूरी था।
तब पहली बार एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इस शब्दकोश में एड्स शब्द जोड़ा गया। एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यूनो डेफीसियंसी सिंड्रोम। तब तक इस लफ्ज को इस्तेमाल होते हुए दो साल बीत चुके थे। बहरहाल, अब मरियम वेब्स्टर डिक्शनरी ने अपना स्पेशल अपडेट जारी किया है जिसमें कोरोना वायरस की महामारी से जुड़े हुए करीब एक दर्जन शब्द शामिल किए गए हैं। ये शब्द महज 34 दिन के भीतर यहां आ पहुंचे हैं तो जाहिर है कि इनके पीछे छिपी अवधारणाओं की अहमियत को इस शब्दकोश ने मान्यता दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 फरवरी को जिनेवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐसे कुछ शब्दों का जिक्र किया था। इसके अलावा पहले से मौजूद कुछ शब्दों को भी नए संदर्भों और अर्थों के साथ अपडेट किया गया।
नई एन्ट्रीज हैं- कोरोनावायरस डिजीज 2019, कोविड-19, कम्यूनिटी स्प्रेड (सामुदायिक प्रसार), कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग (संपर्क खोज), सोशल डिस्टैंसिंग (सामाजिक अंतराल), सुपर स्प्रैडर (महा-प्रसारक), इंडेक्स केस (प्रथम प्रकरण), इंडेक्स पेशेंट (प्रथम रोगी), पेशेंट जीरो (मूल रोगी) और सेल्फ क्वैरंटीन (निजेकांतवास)। ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोश ने मरियम वेब्स्टर के अपनाए शब्दों में से सिर्फ तीन चुने हैं- कोविड 19, सोशल डिस्टैंसिंग और सेल्फ-क्वैरंटीन। बाकी 11 शब्द ये हैं- एल्बो बंप (कोहनी उभार), टु फ्लैटन द कर्व (प्रसार समतलन), इन्फोडेमिक (सूचना-महामारी), पीपीई (निजी सुरक्षा उपकरण), आर0 या आरनॉट (किसी एक संक्रमित से संक्रमण पाने वाले लोगों की औसत संख्या), सेल्फ-आइसोलेट (स्व-पृथकवास या स्वेकांत), शेल्टर इन प्लेस (अपने स्थान में सीमित), सोशल आइसोलेशन (सामाजिक अलगाव) और डब्लूएफएच (वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम)।
अभी कुछ शब्द इन डिक्शनरियों को प्रभावित नहीं कर सके हैं। शायद अगले किसी अपडेट में इनका भी नंबर लगे। ये शब्द हैं- कोवीडियट (कोरोअहमक), कोबीडियंट (कोज्ञापालक), लॉकडाउन (घरबंदी, तालाबंदी, गृहसीमितता या सर्वत्रशून्यता), पैंडेमिक (वैश्विक महामारी), हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक रोग-प्रतिरोधकता), कोरोनियल्स (कोरोपीढ़ी) आदि-आदि। दावेदार शब्द और भी हैं। मिसाल के तौर पर इस पर गौर फरमाइए- पेशेन्ट जीरो (मूल रोगी या शून्यरोगी) जूनोटिक (जंतु-प्रसारित) रोगों का सुपर-स्प्रैडर (महाप्रसारक) बन जाएगा, अगर वह सैनिटाइजेशन (शुद्धिकरण) में नहीं रहेगा और फेस मास्क (मुखपट्टी) का इस्तेमाल नहीं करेगा। ऐसे रोगी अमूमन वेंटिलेटर (सांसयंत्र या श्वसनयंत्र) तक अपनी पहुंच चाहते हैं। कोरो उपसर्ग का प्रयोग करके बने शब्द बड़े अनूठे हैं और अलग पहचान बनाते जा रहे हैं, जैसे- कोवीडियट और कोबीडियंट।
एक मिसाल देखिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आग्रह किया कि वह कोरोना से लड़ रहे लोगों के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए ताली-थाली, शंख वगैरह बजाएं लेकिन बहुत से कोरोअहमक (कोवीडियट) थालियां, शंख, ढोलक और मजीरे आदि लेकर भारी भीड़ के रूप में गलियों में निकल गए। उधर कोज्ञापालकों (कोबीडियंट) की भी कमी नहीं थी। जैसे कचरे से कागज, पॉलीथीन आदि इकट्ठा करने वाला गरीब इंसान, जो ठीक पांच बजे अकेला खड़ा होकर ताली बजा रहा था।
महामारी ने कुछ पुराने शब्दों और पहले से मौजूद शब्दों को भी नई जिंदगी के साथ-साथ नए अर्थ दे दिए हैं। मिसाल के तौर पर लॉकडाउन का इस्तेमाल हड़तालों आदि के दौरान ज्यादा सुनने में आता था। लेकिन आज वह सामाजिक संदर्भ में इस्तेमाल हो रहा है। सोशल डिस्टैंसिंग अब तक उन लोगों के संदर्भ में इस्तेमाल होता था जो समाज से अलग-थलग बने रहते हैं। यह उन लोगों के संदर्भ में भी इस्तेमाल होता था जिन्हें किसी कारण से समाज से अलग-थलग कर दिया गया है। हमारे यहाँ पर बुरी ही सही लेकिन गांव-बाहर, जात-बाहर या हुक्का पानी बंद करने जैसी अवधारणाएं प्रचलित हैं जो इसकी पारंपरिक परिभाषा के दायरे में आती थीं। लेकिन अब सोशल डिस्टैंसिंग एक सकारात्मक संदर्भ में सामने आया है। लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे से उचित दूरी बनाकर चल रहे हैं।
क्वारंटाइन शब्द भारतीयों के लिए कुछ हद तक अनसुना सा है। हमारे यहां यह अवधारणा तो प्रचलित रही है (कुष्ठ, चेचक, तपेदिक जैसे रोगों तथा मृत्यु-उपरांत एकांत जैसे संदर्भों में) लेकिन ऐसे शब्द मौजूदा प्रचुरता में शायद ही कभी इस्तेमाल हुए हों। इसी से जुड़ा शब्द है- आइसोलेशन (पृथकवास, अलगाव या पृथक्करण) जो पहले नकारात्मक संदर्भ में इस्तेमाल होता था। लेकिन अभी तो ऐसा लगता है कि कोई आइसोलेशन में है तो समाज पर कितना बड़ा उपकार कर रहा है।