एक अजीब सी बेबसी
जब दिखती है
कुछ लोगों के चेहरों पर
तो ऐसा लगता है
जैसे
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं होने का एहसास
भीतर से खोखला करता हुआ
काँटों भरे रास्तों पर चलता हुआ
अपने तीखेपन से
याद दिलाता है
जीवन के प्रेक्षागृह में
लगा हुआ
वही पुराना चलचित्र
जिसके घिसे हुए दृश्य
ले जाते हैं अपने साथ
धूल भरे उन्हीं गलियारों में
जो कभी
हुआ करते थे आबाद
वक्त के कतलखाने में।
-यशवन्त माथुर ©
01/04/2020
जब दिखती है
कुछ लोगों के चेहरों पर
तो ऐसा लगता है
जैसे
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं होने का एहसास
भीतर से खोखला करता हुआ
काँटों भरे रास्तों पर चलता हुआ
अपने तीखेपन से
याद दिलाता है
जीवन के प्रेक्षागृह में
लगा हुआ
वही पुराना चलचित्र
जिसके घिसे हुए दृश्य
ले जाते हैं अपने साथ
धूल भरे उन्हीं गलियारों में
जो कभी
हुआ करते थे आबाद
वक्त के कतलखाने में।
-यशवन्त माथुर ©
01/04/2020
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