अंधेरी रात के बाद फिर,
एक नया सवेरा आएगा।
जागेगा जन-जन का मन,
और विजय के गीत गाएगा।
है आज का यह क्षणिक समय,
जो लंबा-लंबा सा लगता है।
बीत जाता था जो तेजी से,
अब तन्हा-तन्हा सा कटता है।
सुनसान-वीरान राहों पर,
साफ हवा की सुर-लहरी से।
ताल मिलाते पक्षी कहते,
'संभल जाओ ' इंसानों से।
है जो अब तक किया - धरा
वो कुछ तो रंग दिखलाएगा
प्रकृति का दण्ड भुगत कर
यह दौर भी बीत जाएगा।
-यशवन्त माथुर ©
12/04/2020
एक नया सवेरा आएगा।
जागेगा जन-जन का मन,
और विजय के गीत गाएगा।
है आज का यह क्षणिक समय,
जो लंबा-लंबा सा लगता है।
बीत जाता था जो तेजी से,
अब तन्हा-तन्हा सा कटता है।
सुनसान-वीरान राहों पर,
साफ हवा की सुर-लहरी से।
ताल मिलाते पक्षी कहते,
'संभल जाओ ' इंसानों से।
है जो अब तक किया - धरा
वो कुछ तो रंग दिखलाएगा
प्रकृति का दण्ड भुगत कर
यह दौर भी बीत जाएगा।
-यशवन्त माथुर ©
12/04/2020
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