जरूरी नहीं
कि हम जो कहें
उसमें कोई अर्थ हो
या निहित हो
कोई संदेश।
हम अक्सर
अपने उलझे
शब्दों के साथ
खुद भी उलझ जाते हैं
समझ नहीं पाते हैं
आधार
उन शब्दों का
जो अचानक ही
उमड़ पड़ते हैं
कागज और
कलम की जुगलबंदी से।
इसलिए बेहतर है
कि हम न ही समझें
बस कहते चलें
मन की बातें
क्योंकि कुछ बातें
सबके लिए नहीं
खुद के लिए ही होती हैं।
-यशवन्त माथुर ©
14/04/20
कि हम जो कहें
उसमें कोई अर्थ हो
या निहित हो
कोई संदेश।
हम अक्सर
अपने उलझे
शब्दों के साथ
खुद भी उलझ जाते हैं
समझ नहीं पाते हैं
आधार
उन शब्दों का
जो अचानक ही
उमड़ पड़ते हैं
कागज और
कलम की जुगलबंदी से।
इसलिए बेहतर है
कि हम न ही समझें
बस कहते चलें
मन की बातें
क्योंकि कुछ बातें
सबके लिए नहीं
खुद के लिए ही होती हैं।
-यशवन्त माथुर ©
14/04/20
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDelete