चलते-चलते
हम आ पहुंचे हैं
सत्य से बहुत दूर
अपनी कल्पनाओं में
भटकते हुए
यहाँ
हमें लगता है
कि हाँ
यही वो जगह है
यही वो मंजिल है
जिसे पाने के लिए
शुरू हुई थी
हमारी यात्रा।
यह सिर्फ भ्रम है
यह वास्तविकता नहीं है
क्योंकि यहाँ
दिखते हैं
सिर्फ फूल ही फूल
और कांटा एक भी नहीं
क्योंकि यहाँ
ठंडी हवाएं हैं
और अंगारा एक भी नहीं
क्योंकि यहाँ
सिर्फ कृत्रिम मुस्कुराहटें हैं
उनके पीछे छुपे आँसू नहीं।
तो आखिर क्यूँ ?
क्यूँ हमें पसंद है
यही छद्म आवरण
क्यूँ हम भागते आ रहे हैं
क्यूँ हमें नहीं हो रहा एहसास
कि जो हो रहा है
गलत है
शायद इसलिए
कि सोच की देहरी पर बनी
पूर्वाग्रह की लक्ष्मण रेखा
शिथिल कर देती है
हमारा साहस
और क्योंकि
वर्तमान में जीते हुए
हम भूल चुके हैं
अपना इतिहास।
-यशवन्त माथुर©
16/04/2020
हम आ पहुंचे हैं
सत्य से बहुत दूर
अपनी कल्पनाओं में
भटकते हुए
यहाँ
हमें लगता है
कि हाँ
यही वो जगह है
यही वो मंजिल है
जिसे पाने के लिए
शुरू हुई थी
हमारी यात्रा।
यह सिर्फ भ्रम है
यह वास्तविकता नहीं है
क्योंकि यहाँ
दिखते हैं
सिर्फ फूल ही फूल
और कांटा एक भी नहीं
क्योंकि यहाँ
ठंडी हवाएं हैं
और अंगारा एक भी नहीं
क्योंकि यहाँ
सिर्फ कृत्रिम मुस्कुराहटें हैं
उनके पीछे छुपे आँसू नहीं।
तो आखिर क्यूँ ?
क्यूँ हमें पसंद है
यही छद्म आवरण
क्यूँ हम भागते आ रहे हैं
क्यूँ हमें नहीं हो रहा एहसास
कि जो हो रहा है
गलत है
शायद इसलिए
कि सोच की देहरी पर बनी
पूर्वाग्रह की लक्ष्मण रेखा
शिथिल कर देती है
हमारा साहस
और क्योंकि
वर्तमान में जीते हुए
हम भूल चुके हैं
अपना इतिहास।
-यशवन्त माथुर©
16/04/2020
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