हम नहीं समझ सकते
उन भारी आँखों के पीछे की दास्तां
जो कुलबुलाती आंतों की आपस में रगड़
और तीखे पेट दर्द को ढोते हुए
हर पल इस इंतजार में हैं
कि यह दौर बीते और पूरी हो
बिना अपराध मिली
काला-पानी की सजा।
हम नहीं समझ सकते
उखड़ती साँसों को देखते
गवाहों के भीतर की तड़प
और कुछ न कर पाने की कसक
क्योंकि हमें आदत है
अपनी चारदीवारी में सिमटे रहकर
उपदेश देने और अंतर्जाल के हर कोने पर
अपनी विकृतियों के
बेपरवाह प्रदर्शन की।
-यशवन्त माथुर ©
23/04/2020
उन भारी आँखों के पीछे की दास्तां
जो कुलबुलाती आंतों की आपस में रगड़
और तीखे पेट दर्द को ढोते हुए
हर पल इस इंतजार में हैं
कि यह दौर बीते और पूरी हो
बिना अपराध मिली
काला-पानी की सजा।
हम नहीं समझ सकते
उखड़ती साँसों को देखते
गवाहों के भीतर की तड़प
और कुछ न कर पाने की कसक
क्योंकि हमें आदत है
अपनी चारदीवारी में सिमटे रहकर
उपदेश देने और अंतर्जाल के हर कोने पर
अपनी विकृतियों के
बेपरवाह प्रदर्शन की।
-यशवन्त माथुर ©
23/04/2020
बहुत सुन्दर
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