हमें नहीं परवाह
उन साथियों की
उन अपनों की
जिनके सपने
भूख-लाचारी और
बेकारी से
हो रहे हैं चूर-चूर,
क्योंकि
यह उनकी समस्या है
या
उनकी किस्मत है
कि उनके हालात
हमारे जैसे
विलासितापूर्ण नहीं
कि वो हम जैसे 'खास' नहीं ,
वो सिर्फ 'आम' हैं
जो बने हैं
सिर्फ हमारी चाकरी के लिए
इंसान के रूप में
उनका सिर्फ 'इंसान'
होना ही काफी नहीं
क्योंकि वो जो हैं , वो हैं
लेकिन हम जैसे नहीं।
-यशवन्त माथुर ©
04/04/2020
सुन्दर रचना
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