ऐसा दौर है यह
कि एक तरफ भूखे-नंगे
और बेघर
दो वक्त पेट भर
खाने की तलाश में हैं ।
ऐसा दौर है यह
कि दूसरी तरफ
शराब के ठेकों पर लगी भीड़
रात के जामों की
आस में है।
ऐसा दौर है यह
कि और गहरी
होती जा रही है लकीर
अमीरी और गरीबी के बीच की।
ऐसा दौर है यह
कि हर कोई
कर रहा है तलाश
जी लेने की तरकीब की।
ऐसा दौर है यह
कि उम्मीदी और ना-उम्मीदी
आमने-सामने खड़े होकर
एक दूसरे को देखते हैं
नजरें फेरते हैं
और पकड़ लेते हैं
अपने-अपने हिस्से की
स्याह-सफेद राहें ।
-यशवन्त माथुर ©
05/05/2020
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह ! आज के हालात का यथार्थ वर्णन
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