11 May 2020

जलते हुए ख्याल

मन के भीतर 
जलते हुए ख्याल 
धुआँ बनकर 
उड़ते हुए 
छोड़ जाते हैं 
अवशेष 
जिनमें छुपे हुए 
हजारों प्रश्नचिह्न 
दे रहे होते हैं गवाही 
मिटा दिए गए शब्दों के 
अस्तित्व की। 
इन प्रश्नचिह्नों के 
आखिरी छोर पर 
बची हुई 
एक तरफा प्रेम 
और एकांत की गीली राख 
चाह कर भी सूख नहीं पाती 
मिल नहीं पाती 
अपने मूल में 
क्योंकि अभी बाकी हैं 
उसके कड़वे यथार्थ 
और वर्तमान के 
कुछ पल। 

-यशवन्त माथुर ©
11/05/2020

2 comments:

  1. यथार्थवादी लेखन ... चाहे एकतरफ़ा ही हो प्रेम इतनी बड़ी घटना है कि उसका असर जल्दी नहीं जाता, कभी-कभी तो जीवन भर एक स्मृति बनकर वह साथ रहता है

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  2. मौजूदा हालात में प्रश्न तो प्रश्न ही बनकर रह गये हैं।

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