बचपन में कभी 8-10 रुपये प्रति किलो मिलने वाली यह चीज अब 200-300 रुपये प्रति किलो के भाव मिलती है। एक समय था जब मई -जून के महीने में न जाने कितनी ही बार कभी पापा तो कभी बाबा जी खरबूजा और तरबूज के साथ ही यह भी खरीदा करते थे। फालसे का शर्बत स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्यवर्धक भी होता है, लेकिन मैं ऐसे ही खाना ज्यादा पसंद करता हूँ। पापा बताते हैं कि आम तौर पर कोई फल खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए लेकिन अपवाद स्वरूप खरबूजा, बेल और फालसा ये तीन ऐसे फल हैं जिन्हें खाने के बाद पानी पिया जा सकता है।
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एक बात और शहरीकरण का असर फालसे की खेती पर भी पड़ा है। आज फेरी वाला बता रहा था कि पेड़ कम होने के साथ ही लोगों की घटती पसंद भी इसकी बढ़ती कीमत का कारण है। लोग 20-25 रु की एक सिगरेट तो खरीद सकते हैं लेकिन इतनी ही कीमत में 100 ग्राम फालसा खरीदना उन्हें अपनी तौहीन लगता है।
-यशवन्त माथुर ©13/05/2020
रोचक जानकारी, वर्षों पहले उत्तर भारत में हमने भी खाया था यह फल, पर बंगलौर में यह नहीं मिलता
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (15-05-2020) को
"ढाई आखर में छिपा, दुनियाभर का सार" (चर्चा अंक-3702) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
…...
"मीना भारद्वाज"
बहुत सही कहा आपने।
ReplyDeleteअब तो बाजार में फालसों से दर्शन भी दुर्लभ हो गये हैं।
फ़ालसे ,करौंदे ,इमली,जंगलजलेबी ,कैथ आदि सहज प्राप्त चीज़े अब दुर्लभ हो गई हैं,लगता है उनके दिन ही बीत गए - उनकी जगह ले ली है तमाम भड़कीले आइटमों ने.
ReplyDeleteबचपन की याद दिला दी आपने ,अब अगर ये लुप्त होता फल मिलता भी हैं तो भी वो स्वाद कहाँ ,सादर नमन
ReplyDeleteजी सच लिखा है अपने अब तो फालसे दिखते ही नहीं।
ReplyDeleteहम भी इसे बचपन मे पसंद करते थे, जब फालसे वाला बाबा आता था तो कहता हुआ जाता था
काले काले फालसे
फालसे नमक लगाके खाले
फालसे कुलड़ मेकड खाले
खाले नमक लगाके खाले
बचपन के दिन फिर याद आ गए इसकी फ़ोटो देखकर।
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