जब कभी मन
शून्य में खुद को देखता है
अँधेरों में
खुद को समेटता है
एकांत के अंत की
निरंतर प्रतीक्षा में
समय के साथ
बीतता है ...
तब
कहीं दूर से
अचानक ही
बातों की पोटली में बंधी
सैकड़ों
उम्मीदें लिए
कोई आ जाता है
किनारे पर लगा जाता है
और उड़ जाता है
छोड़ कर
भ्रम के कई प्रश्नचिह्न
कि वो जो था
कौन था ?
-यशवन्त माथुर ©
18/05/2020
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
पढ़े--लौट रहे हैं अपने गांव
वाह ! उम्मीदों की पोटली लिए कोई आता है और भोला मन फिर जाल में फंस जाता है, हर उम्मीद खो जाये फिर भी जो अटल रहे ऐसा मन ही जाग कर नयी राह बनाता है
ReplyDelete