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29 June 2020

हार कबूल है

न जाने कौन से जश्न में जीत मशगूल है।  
मैं मानता हूँ, हाँ! मुझे अपनी हार कबूल है।

इक दास्तां लिखी थी स्याही से, जो मिट गई।  
वक्त के दायरे में, और धूल में सिमट गई।

बचे-खुचे अल्फ़ाज़ भी बारिशों में बह गए।  
फिर भी कुछ कतरे हैं जो बुहरने से रह गए।

है मालूम कि बेशक ना-मालूम बना फिरता हूँ।  
उठता हूँ जब भी मगर अक्सर गिरा करता हूँ।

न जाने इस माहौल में ये कैसा क्या फितूर है। 
हार है कुबूल क्योंकि जीत कोसों दूर है।  

-यशवन्त माथुर ©
26062020

28 June 2020

China cash that BJP cannot see..............



Time was when accepting donations from Chinese institutions was as proper and acceptable as sharing space on a swing Yet, the BJP, in its haste to divert attention from the Galwan blunder, has forgotten the adage that when you point a finger at someone, you are pointing three at yourself. In this case, at least two fingers are pointing at the BJP ecosystem The Observer Research Foundation, a foreign policy think tank associated with foreign minister S. Jaishankar's son, received funding from the Chinese consulate, including that in Calcutta, in 2016. The ORF is supported by Reliance Industries Another think tank, the Vivekananda International Foundation, has declared on its website that it has working relationships with nine Chinese institutions on matters of foreign and strategic policy National security adviser Ajit Doval is founding director of the Vivekananda International Foundation (VIF), which shares close ties with BJP leaders and the RSS The think thanks themselves put up this information in the public domain long ago.
The identity of the donors would not have drawn attention had not the BJP made a non-issue into a national security issue by accusing the Congress of Chinese links based on money received in 2005-06. It's common for organisations worldwide to receive foreign funding Dhruva Jaishankar, son of the foreign minister, became director of the US Initiative at the Observer Research Foundation (ORF) last year. The foreign minister, also a former ambassador to China, is a regular visitor to the ORF where he delivers talks on various foreign policy-related topics The ORF website carries a list of foreign donors and the amounts received from them It shows the think tank received three grants, together worth over Rs 1.25 crore, from the Chinese consulate-general in 2016 and another Rs 50 lakh the following year The foundation received Rs 7.7 lakh on April 29, 2016; another Rs 11.55 lakh on November 4 that year --- both from the Chinese consulategeneral in Calcutta --- and Rs 1.068 crore from the "Consulate General of People's Republic of China" on December 31 that year A grant of Rs 50 lakh came from the "Consulate General of People Republic of China" on December 1, 2017. The Vivekananda Interna- tional Foundation's website lists its association with the China Institute of International Strategic Studies (Beijing); China Institute of International Studies (Beijing); Centre for South Asian Studies, Peking University (Beijing); Research Institute for Indian Ocean Economies, Yunnan University of Finance and Economics, Kunming; National Institute of International Strategy of Chinese Academy of Social Sciences, Beijing; Centre for South Asia & West China Cooperation & Development University, Chengdu; Institute of South Asian Studies, Sichuan University, Chengdu; Silk Road Think Tank Network Development Research Council, Beijing; and the Centre for Indian Studies, Shenzhen Sources in the security establishment said members of the two think tanks had ample access to North Block and South Block, the seats of governance An email sent by this newspaper to the ORF on Saturday night elicited the reply: "Your message has been received and we will get back to you at the earliest." This newspaper also sent a message to ORF president Samir Saran on his Twitter account and was awaiting a reply at the time of going to press However, this report has not made any suggestion that any of the donations are not legal.

Curtsy:The Telegraph
(IMRANAHMED SIDDIQUI)
(The Telegraph-28 Jun 2020)

27 June 2020

हार

कभी-कभी
हारना अच्छा होता है
जीतने की
उम्मीद बनाए रखने के लिए
और मन के भीतर
नए कल के
दिए जलाए रखने के लिए।

-यशवन्त माथुर ©
27062020

25 June 2020

चाहत

चाहत पहचाने जाने की नहीं
चाहत सिर्फ इतनी है कि
पहचानता रहूँ सबको।

-यशवन्त माथुर ©
25062020

24 June 2020

कहानियाँ हैं.....

कई किस्से हैं यहाँ
कई कहानियाँ हैं
कहीं मजबूरियां हैं
कहीं मेहरबानियाँ हैं
उलझनें भी उलझने लगीं हैं
अब अपने ही जाल में
कहीं रोता है बचपन
कहीं उजड़ती जवानियाँ हैं।

-यशवन्त माथुर ©
24062020

23 June 2020

कुछ नहीं होगा

सिर्फ किताबें हैं यहाँ
और किताबी ज्ञान है
धरातल पर
न कुछ है
न ही होगा
सब व्यर्थ है यहाँ
कुछ नहीं होगा।

-यशवन्त माथुर ©
23062020 

22 June 2020

कल देखना फिर

कुछ यायावर हैं यहाँ
कुछ तमाशाई हैं
फ़ितरतें तो खैर
सभी की समझ आई हैं
वक्त अपना भी होगा
कल देखना फिर
है खुदा एक और
एक उसकी खुदाई है।

-यशवन्त माथुर ©
22062020

21 June 2020

Shravasti Trip Photographs (30/11/2019)-Part-I
































Copyright-Yashwant Mathur©

ग्रहण

बदल यूं आसमान में
उमड़ते रहेंगे
कुछ गरजते रहेंगे
कुछ बरसते रहेंगे
लोग कुछ भी कहें
कहते रहें
ग्रहण तो ग्रहण हैं
लगते रहेंगे।
-यशवन्त माथुर ©
21062020 

20 June 2020

रास्ते

हम चलते जाएंगे
और
ये लंबे लंबे रास्ते
यूं ही बीतते जाएंगे
बहुत तेजी से
आखिरी पड़ाव पर आकर
कुछ बातें कह जाएंगे
कुछ अधूरी छोड़ जाएंगे।
-यशवन्त माथुर ©
20062020

19 June 2020

फर्क नहीं पड़ता

ये ठौर
मेरा है जनाब
आप आएं
न आएं
फर्क नहीं पड़ता।

-यशवन्त माथुर ©
19062020

18 June 2020

ज़िंदगी

कोई गैर
अपना बन कर
कभी दुआएं ले जाता है
और कोई अपना
गैर बन कर
सब कुछ खतम कर जाता है
यही ज़िंदगी है
यही रिश्ता-नाता है।

-यशवन्त माथुर ©
18062020

आत्महत्या

आत्महत्या
कायरता नहीं
उस स्थिति का
चरम बिन्दु होता है
जहाँ व्यर्थ लगने लगती हैं
इस विद्रूप दुनिया की
मायावी फ़ितरतें।

-यशवन्त माथुर ©
17062020

17 June 2020

एहसास है मुझको

है एहसास मुझको
कि आने वाले हैं
लौट कर
संघर्ष के बीते दिन
क्योंकि
समय का घूमता पहिया
अक्सर मुझे
ला खड़ा करता है वहीं पर
जहाँ से शुरू किया था
दो कदम आगे बढ़ना।

-यशवन्त माथुर ©
17062020

सही

जरूरी नहीं
जो उनको सही लगे
सही वही हो
सही वह भी हो सकता है
जो सबकी नज़रों में
सही नहीं हो।

-यशवन्त माथुर ©
17062020

16 June 2020

वो कायर नहीं था

हमें नहीं मिलेंगे
उन सवालों के जवाब
जिनकी कालिख
वो हमारे मुँह पर पोत गया

हम यही कहेंगे
कि वो एक कायर था
जो हार मन कर चला गया

लेकिन सुन लो नहीं
नहीं..  वो कायर नहीं
बहादुर था
हिम्मती था
कायर तो हम सब थे..
हैं... और रहेंगे
यूं ही
मौत से डरते रहेंगे

ये एक ऐसा आज है
जिसका समानार्थी
सबके भीतर
परत दर परत
जमा हुआ
ऐसा अवसाद है
जिससे पार पाने से
कहीं ज्यादा आसान
आसमान से लाना है
तोड़ कर चाँद-तारे।

-यशवन्त माथुर ©
16062020

15 June 2020

मुक्ति

जब सामने हो अंधेरा
और कोई रास्ता न हो
किसी का किसी से
जब कोई वास्ता न हो ..
तब होती है जायज ही
मुक्त हो जाने की
मुखर और
अपरिहार्य सोच।

-यशवन्त माथुर ©
15062020

14 June 2020

असलियतें

रोज सामने आती हैं
असलियतें उनकी,
नकाब ओढ़ कर 
जो अच्छे बने फिरते हैं;
मालूम है उनके मन में 
क्या है फिर भी
रोज हम उनके चेहरे 
पढ़ा करते हैं।

-यशवन्त माथुर ©
14062020

13 June 2020

समय....

समय सबका आता है
आज उनका है
कल अपना होगा
पूरा हर अधूरा
सपना होगा।

-यशवन्त माथुर ©
13062020

12 June 2020

क्या पता

ज़िन्दगी का क्या पता
कल रहे न रहे
रहने दो कुछ शब्द
कहे- अनकहे
एक छोटी सी डोर है
जब तक उड़ रही है
छू रही है आसमां
क्या पता कब
बीच से कट कर
मझधार में गिर पड़े।

-यशवन्त माथुर©
12062020

11 June 2020

तब पूछूँगा

एक प्रश्न है मन में
जो तब पूछूँगा
जब आने वाली प्रलय
गुजर जाएगी
और इस
तड़पती देह के भीतर
आखिरी दो साँसें
बाकी रह जाएंगी।

-यशवन्त माथुर ©
11/06/2020

10 June 2020

दीमक

साधारण दीमक से
कहीं ज्यादा घातक होती है
वह दीमक
जो इंसानी रूप में
हमारे आस-पास रह कर
चूसती रहती है
रिश्तों-संबंधों
और मित्रता की
रूह को।

-यशवन्त माथुर ©
10062020

09 June 2020

क्या है यहाँ

कुछ मन की सुनी
कुछ सुनी ही नहीं
क्या है यहाँ
शायद
कुछ भी तो नहीं।

-यशवन्त माथुर ©
09062020

08 June 2020

कुछ सपने

बहुत अजीब से होते हैं
कुछ सपने
दिन के उजाले में
अचानक से दिखते हैं
और रात की नींद में
कहीं गुम हो जाते हैं
कुछ सपने
बस ऐसे ही आ कर
उलझा जाते हैं।

-यशवन्त माथुर ©
08062020

07 June 2020

शायद ...

मालूम होते हुए भी
कि जिसकी तलाश में
हम हैं
वो मिलना नहीं है
फिर भी
फर्जी उम्मीदों को
गांठ में बांधे
पड़े रहते हैं
उसी के पीछे
शायद ये सोच कर
कि किस्मत
हमारी मर्जी से
बदल ले
अपने रंग।

-यशवन्त माथुर ©
07/06/2020

06 June 2020

वक्त के कत्लखाने में -20

यूं ही
यहीं कहीं
ठहर कर, रुक कर
आभासी चबूतरे पर
थोड़ा सुस्ता कर
मन का पंछी
उड़ने लगता है इस कदर
कि उसे
न कुछ सूझता है
न बूझता है
बस उड़ने लगता है
शब्दों के साथ
बेसुध हो कर
वक्त के कत्लखाने में।

-यशवन्त माथुर ©
06/06/2020 

03 June 2020

वो दर्द कहाँ खो गया?

इंसान इंसान न रहा हैवान हो गया। 
अपनी हर शय में शैतान हो गया। 

गम उसके अपने हों तो भी दर्द होता नहीं।  
दिल- दिमाग सोया  है  कभी उठता नहीं। 

वो जागा ही कब था इस आज के पहले।  
वो नींद में अब भी है  परवाज़ के पहले। 

ये मंज़र ऐसा है कि दिल को न जाने क्या हो गया। 
जिसे महसूस कर रोता था वो दर्द कहाँ खो गया? 

-यशवन्त माथुर ©
03/06/2020  

शानदार सवारी ....(विश्व साइकिल दिवस पर)


स्कूटी, स्कूटर और
मोटर साइकिलों के इस युग में
मेरे जैसे
'मजदूर क्लास' कुछ लोग
अपने साथ
रोज ले कर चलते हैं
'पुरातन', 'आदिम'
और कुछ
न कहे जा सकने वाले
विशेषण।
क्योंकि सब कुछ होते हुए भी
दो पहिया के नाम पर
हमारे पास
है
तो सिर्फ एक साइकिल
जिस पर चलते हुए
और जिसे चलाते हुए
मीलों लंबा रास्ता
दम घोंटू धुआँ फैलाए बिना ही
धीरे धीरे कट जाता है
सफर पूरा हो जाता है।
अपने बदलते रंग रूप
और आधुनिकता के साथ
साइकिल
अब भी
एक शुद्ध विचार है
आम जीवन का आधार है
जिसके पहियों पर
टिका हुआ है बोझ
अर्थव्यवस्था
और हमारी
सकल प्रगति का।

-यशवन्त माथुर ©
03/06/2020  

02 June 2020

10 वर्ष पूरे

कभी कम, कभी ज्यादा लिखते हुए ब्लॉगिंग में आज 10 वर्ष पूरे हो गए। मैं अच्छे से जानता हूँ कि मेरा लिखा हुआ उस स्तर का नहीं है जितना मेरे हमउम्र  साथियों का है, फिर भी जो मन में आता है उसे बिना कुछ ज्यादा सोचे कि किसी को पसंद आएगा या नहीं; सीधे पोस्ट कर देता हूँ। ' जो मेरा मन कहे' नाम रखने का यही कारण भी है। यह एक तरह से मेरी डायरी जैसा है जिसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। जो भी है , जैसा भी है मेरा ब्लॉग है। जब तक गूगल मुफ़्त का यह प्लेटफ़ॉर्म बनाए रखेगा, मेरा ब्लॉग भी बना रहेगा और अधिक कुछ सोचा नहीं है।

-यशवन्त माथुर 
02/06/2020  

01 June 2020

उस दौर में हैं हम ....

उस दौर में हैं हम
जहाँ व्यथित है 
हर कामगार
जहाँ अनिश्चित है 
जीवन और रोजगार 
थमा हुआ है व्यपार। 
सिर्फ हाहाकार ही है 
हर जगह 
जो सुनाई देता है 
सिर्फ चंद ही लोगों को 
नक्कारखाने में 
तूती की तरह। 
भविष्य और अपनी 
परिणति से अनजान 
यह दौर 
एक शुरूआत है 
अंतहीन पन्नों पर लिखे गए 
काले अध्याय की 
जिसका एक एक अक्षर 
एक एक मात्रा 
और वाक्य विन्यास 
इस कदर बिगड़ा हुआ है 
कि उसे फिर से रचने में 
लग जाएंगी 
इतनी सदियाँ 
कि तब तक शायद 
आकार ले ले 
एक नई सभ्यता। 

-यशवन्त माथुर ©
01/06/2020

खुद ही चलना है ....

हम चलें न चलें
हम बदलें न बदलें
समय को ऐसे ही चलना है
समय को ऐसे ही बदलना है ....
कभी कभी लगता है
सब एक रस है
जो हो रहा है
वो नीरस है
बस
एक अंत:प्रेरणा ही
गति दे सकती है
उबार सकती है
इस बोझिलता से
जिसे खुद ही बदलना है
जिसे  खुद ही चलना है।

-यशवन्त माथुर ©
01/06/2020

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