उस दौर में हैं हम
जहाँ व्यथित है
हर कामगार
जहाँ अनिश्चित है
जीवन और रोजगार
थमा हुआ है व्यपार।
सिर्फ हाहाकार ही है
हर जगह
जो सुनाई देता है
सिर्फ चंद ही लोगों को
नक्कारखाने में
तूती की तरह।
भविष्य और अपनी
परिणति से अनजान
यह दौर
एक शुरूआत है
अंतहीन पन्नों पर लिखे गए
काले अध्याय की
जिसका एक एक अक्षर
एक एक मात्रा
और वाक्य विन्यास
इस कदर बिगड़ा हुआ है
कि उसे फिर से रचने में
लग जाएंगी
इतनी सदियाँ
कि तब तक शायद
आकार ले ले
एक नई सभ्यता।
-यशवन्त माथुर ©
01/06/2020
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