कई किस्से हैं यहाँ
कई कहानियाँ हैं
कहीं मजबूरियां हैं
कहीं मेहरबानियाँ हैं
उलझनें भी उलझने लगीं हैं
अब अपने ही जाल में
कहीं रोता है बचपन
कहीं उजड़ती जवानियाँ हैं।
-यशवन्त माथुर ©
24062020
कई कहानियाँ हैं
कहीं मजबूरियां हैं
कहीं मेहरबानियाँ हैं
उलझनें भी उलझने लगीं हैं
अब अपने ही जाल में
कहीं रोता है बचपन
कहीं उजड़ती जवानियाँ हैं।
-यशवन्त माथुर ©
24062020
No comments:
Post a Comment