इंसान इंसान न रहा हैवान हो गया।
अपनी हर शय में शैतान हो गया।
गम उसके अपने हों तो भी दर्द होता नहीं।
दिल- दिमाग सोया है कभी उठता नहीं।
वो जागा ही कब था इस आज के पहले।
वो नींद में अब भी है परवाज़ के पहले।
ये मंज़र ऐसा है कि दिल को न जाने क्या हो गया।
जिसे महसूस कर रोता था वो दर्द कहाँ खो गया?
-यशवन्त माथुर ©
03/06/2020
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