अब नहीं निकलेंगे लोग
मोमबत्तियाँ लेकर सड़कों पर
नहीं निकलेंगे जुलूस
#JusticeforManisha |
और पैदल मार्च
नहीं देंगे श्रद्धांजलि
गगन भेदी नारों से
नहीं करेंगे
दिन-रात टेलीविज़न पर
न्याय की माँग
नहीं चमकाएंगे
कैमरों के आगे अपने चेहरे
नहीं करेंगे धरने और प्रदर्शन
क्योंकि सत्यकथा पढ़ने के अभ्यस्त
कई टुकड़ों में बँटे हुए
हम संवेदनहीन लोग
अभी व्यस्त हैं
चरस-गाँजा, हत्या और आत्महत्या की
गुत्थियाँ सुलझाने में।
हम
अपनी विचारशून्यता के साथ
दिन के भ्रम में
उतराते जा रहे हैं
काली घनी रात के बहुत भीतर
इतने भीतर
कि जहाँ से बाहर
अगर कभी निकल भी पाए
तो भी लगा रहेगा
एक बड़ा प्रश्नचिह्न
हमारे बदलाव
और हमारी विश्वसनीयता पर
वर्तमान की तरह।
30092020
अभी व्यस्त हैं
ReplyDeleteचरस-गाँजा, हत्या और आत्महत्या की
गुत्थियाँ सुलझाने में।
सही कहा आपने बस एक ही खबर के पीछे पूरा समय ऐसे निकाल रहे हैं जैसे इसके सिवा देश में कुछ हो ही नहीं रहा...।
बहुत ही सुन्दर समसामयिक सृजन।
बिलकुल सही कहा यशवंत जी आपने ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद घटना।
ReplyDeleteएकदम सही कहा आपने । मानव कितना संवेदनहीन हो गया है । नारे भी लगाए थे,मोमबत्तियां भी जलाई थे ,पर नतीजा ...शून्य । ये सिलसिला तो यूँ ही चल रहा है ।
ReplyDeleteबेहद अफसोसजनक, सही कहा है आपने, मीडिया इन दिनों अपनी भूमिका निभाने में असफल सिद्ध हो रहा है
ReplyDeleteवर्तमान दुरावस्था पर मार्मिक कविता...
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ReplyDeleteयथार्थ को दर्शाता सुंदर सृजन ,सादर नमन आपको
सटीक प्रस्तुति.
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