काश!
कि मैं बदल सकता
ले जा सकता
समय को वहीं
उसी जगह
जहाँ से
शुरू हुआ था
ये सफर
लेकिन
अपनी द्रुत गति से
समय के इस चलते जाने में
थोड़ी भी
नहीं होती गुंजाइश
इस जीवन के
बीते पलों में
वापस लौटने की
मगर हाँ
सिर्फ चिरनिद्रा ही
होता है
अंतिम विकल्प
जिसकी प्रतीक्षा में
कभी कभी लगने लगता है
एक एक सूक्ष्म पल
कई -कई जन्मों जैसा।
22112020
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसमय को पीछे लौटाले जाना सम्भव नहीं किन्तु समय को वर्तमान में ठहरा लेना संभव है, उस एक पल में जहाँ न कोई अतीत है न भविष्य, पर फिर भी ऐसा कुछ है जो मन को थामता है, चिरनिद्रा तो एक शब्द भर है, इधर आँख मूंदते ही एक नया सफर आरंभ हो जाता है ऐसा भी कहते है कुछ सयाने ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी बात दिल को छू गई यशवंत जी ।
ReplyDeleteआध्यात्मिक सा गहन लेखन।
ReplyDeleteसुंदर सार्थक।
आप सभी सुधी जनों का हार्दिक धन्यवाद!
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