टाटा-बिरला थे पहले
अब अंबानी- अडानी होता है
पहले जो थोड़ा हँसता था
आम आदमी अब सिर्फ रोता है।
हल छोड़ सड़क पर निकल किसान
माँग रहा समर्थन और सम्मान
लेकिन बहुतों की नज़रों में
वो माओवादी होता है।
रोजगार के सपने देख देख कर
परीक्षा शुल्क चुकाने वाला
उस युवा की आँखों में देखो
जो निजीकरण को ढोता है।
महँगाई के इस स्वर्ण काल में
बजट नहीं न बचत कोई
सरकारी उद्यम सभी बेच कर
कैसा विकास ही होता है?
आम आदमी अब सिर्फ रोता है।
15122020
सही कहा यशवंत भाई की आम आदमी अब सिर्फ रोता है।
ReplyDeleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteपूर्णतः सहमत।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपने ठीक ही कहा यशवंत जी । आम आदमी के इस रूदन का कोई अंत कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन
ReplyDeleteरोजगार के सपने देख देख कर
ReplyDeleteपरीक्षा शुल्क चुकाने वाला
उस युवा की आँखों में देखो
जो निजीकरण को ढोता है।
एकदम सटीक सार्थक एवं लाजवाब सृजन।
बेहतरीन
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर स्रजन।
ReplyDeleteवास्तविकाता का दिग्दर्शन।