मैं नहीं कवि
न ही कविता को ही कह पाता हूँ
बस जो भी मन में आता है
वो ही लिखता जाता हूँ।
है नहीं भान न ही ज्ञान
रस छंद अलंकारों का
परिचय बस थोड़ा ही है
काव्य के प्रकारों का।
बस थोड़ा जो कुछ सहेजा समेटा
और जो कुछ है देखा समझा
शब्दों की डोर में वो ही
थोड़ा पिरोता जाता हूँ ।
मैं नहीं कवि
न ही कविता को ही कह पाता हूँ
मन की कोर से जो निकलती
वो बात बताता जाता हूँ ।
23122020
मन के भाव स्वतः ही रस छंद अलंकरों से अलंकृत होते हैं जो इन्हें पिरोना जानता है वही तो कवि है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteऔर जो मन से निकलकर शब्दों में उतर जाए, वही सार्थक सृजन है । बहुत अच्छी कविता है यह आपकी यशवन्त जी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
मनोभावों को उद्घृत करती सुंदर और सार्थक रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..।
ReplyDeleteकविता जो दिल से उमगती है वही तो और दिलों को आलोड़ित करती है !
ReplyDeleteबहुत सहजभाव से कह दी है आपने अपनी रचना।
ReplyDeleteमनोभावों का सुन्दर चित्रण।
मैं नहीं कवि..
ReplyDeleteकविता का नहीं सृजक..
माध्यम केवल बातों का..
आपकी बातें ..बातें आपके मन की..
मेरी लेखनी माध्यम मात्र..अनंत मन के परिचय की..