12 January 2021

शब्द

कितने ही शब्द हैं यहाँ 
कुछ शांत 
कुछ बोझिल से 
उतर कर चले आते हैं 
मन के किसी कोने से 
कहने को 
कुछ अनकही 
सिमट कर कहीं छुप चुकीं 
वो सारी 
राज की बातें 
जिनकी परतें 
गर उधड़ गईं 
तो बाकी न रहेगी 
कालिख के आधार पर टिकी 
छद्म पहचान 
बस इसीलिए चाहता हूँ 
कि अंतर्मुखी शब्द 
बने रहें 
अपनी सीमा के भीतर
क्योंकि मैं 
परिधि से बाहर निकल कर 
टूटने नहीं देना चाहता 
नाजुक नींव पर टिकी 
अपने अहं की दीवार। 

-यशवन्त माथुर ©
12012021

9 comments:

  1. शब्दों की गहराई में जाकर रची सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. मैं
    परिधि से बाहर निकल कर
    टूटने नहीं देना चाहता
    नाजुक नींव पर टिकी
    अपने अहं की दीवार।
    बहुत सटीक।

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ... शब्दों की ।

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. वाह ! अभिनव स्वीकारोक्ति

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  6. परिधि से बाहर निकल कर
    टूटने नहीं देना चाहता
    नाजुक नींव पर टिकी
    अपने अहं की दीवार।

    बहुत ख़ूब... बेहतरीन सृजन

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  7. बड़ी गहरी बात कह दी है यशवंत जी आपने । मगर सच । और सच के सिवा कुछ नहीं ।

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  8. कितने ही शब्द यहां..
    बहुत सुंदर..रचना

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  9. बहुत सराहनीय कविता है

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