31 January 2021

देहरी पर अल्फाज़

समय के साथ चलते-चलते 
नयी मंजिल की तलाश में 
भटकते-भटकते 
कई दोराहों-चौराहों से गुजर कर 
अक्सर मिल ही जाते हैं 
हर देहरी पर 
बिखरे-बिखरे से 
उलझे-उलझे से 
भीतर से सुलगते से 
कुछ नये अल्फाज़ 
जिन्हें गर कभी 
मयस्सर हुआ 
कोई कोरा कागज़ 
तो कलम की जुबान से 
सुना देते हैं 
एक दास्तान 
अपनी बर्बादियों के 
उस बीते दौर की 
जिससे बाहर निकलने में 
बीत चुकी होती हैं 
असहनीय तनाव 
और अकेलेपन की 
सैकड़ों सदियाँ। 

-यशवन्त माथुर ©
31012021

25 comments:

  1. कुछ नये अल्फाज़
    जिन्हें गर कभी
    मयस्सर हुआ
    कोई कोरा कागज़
    तो कलम की जुबान से
    सुना देते हैं
    एक दास्तान ....

    सार्थक अभिव्यक्ति,
    सार्थक कविता

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  2. परंतु बाहर निकलना भी महत्वपूर्ण होता है । अति सुन्दर ।

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    1. लेकिन ख़ुशनसीब ही निकल पाते हैं अमृता जी । बाकी जिस पर गुज़रती है, वही जानता है । जब दर्द तब सबसे घना और इंसान को अपने में लपेट लेने वाला होता है, जब उसे बांटने वाला कोई न हो ।

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    2. मेरे दिल की बात कह दी है यशवंत जी आपने ।

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    3. सादर धन्यवाद अमृता जी एवं जितेंद्र जी

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव


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  4. यदि मैं आपको यथार्थवादी कवि कहूँ तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी।
    निरंतर एक से बढ़।कर एक रचनाओं के संकलन में आप अग्रणी रहे ।सादर

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    1. सादर धन्यवाद सधु जी🙏
      मैं खुद को कवि ही नहीं मानता। बस जो मन कहता है वो ही यहां लिख देता हूं।

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  5. एक दास्तान
    अपनी बर्बादियों के
    उस बीते दौर की
    जिससे बाहर निकलने में
    बीत चुकी होती हैं
    असहनीय तनाव
    और अकेलेपन की
    सैकड़ों सदियाँ। ..हृदय स्पर्शी रचना..

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  6. सुंदर रचना

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  7. बाहर निकल कर ही कोई सुना सकता है दर्द की दास्तान भी संभवत:...

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  8. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  9. अल्फ़ाज़ के माध्यम से गुमनाम हारे व्यक्तित्वों पर एक गहन दृष्टि ड़ालती सुंदर प्रतीकात्मक रचना।
    सुंदर सृजन।
    हृदय स्पर्शी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद कुसुम जी।

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  10. अक्सर मिल ही जाते हैं
    हर देहरी पर
    बिखरे-बिखरे से
    उलझे-उलझे से
    भीतर से सुलगते से
    कुछ नये अल्फाज़

    लाजवाब....
    बेहतरीन रचना यशवंत जी 🌹🙏🌹

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