छायावाद
हर कलम से
कागज पर छपने लगा
आया नहीं बसंत
कि बस प्रेम दिखने लगा।
कोई राधा, कोई मीरा
कोई गोपियों की बात करता है
कोई संयोग में रमा-पगा
कोई वियोगी सा
व्याकुल लगता है।
किसी को दिखती है
पीली बहार
हर तरफ बिखरी हुई सी
कोई कोयल के सुरों में खोकर
गुलाबों को सूँघता है।
लेकिन
क्या सिर्फ प्रेम ही विषय है
आज के इस दौर का ?
जरा उसको भी देख लो
जो अपने हक के लिये लड़ने लगा।
आया नहीं बसंत
कि बस प्रेम दिखने लगा।
05022021
वाह,बिल्कुल सत्य कहा आपने।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteऔर भी मसले हैं..
ReplyDeleteप्रेम ही कोई मसला नहीं ..
विषयांतर कर के मोह ही क्यों बस पनपने लगा..
बसंत आया नहीं कि , बस प्रेम दिखने लगा..
सादर प्रणाम..
सादर धन्यवाद!
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-02-2021) को "विश्व प्रणय सप्ताह" (चर्चा अंक- 3970) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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"विश्व प्रणय सप्ताह" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर धन्यवाद!
Deleteबहुत सही प्रश्न उठाया है आपने....
ReplyDelete"क्या सिर्फ प्रेम ही विषय है आज के इस दौर का ? जरा उसको भी देख लो जो अपने हक के लिये लड़ने लगा।'
साधुवाद 🙏
सादर धन्यवाद!
Deleteप्रभावी अंदाज ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteछायावाद
ReplyDeleteहर कलम से
कागज पर छपने लगा
आया नहीं बसंत
कि बस प्रेम दिखने लगा।
बहुत खूब 🌹🙏🌹
सादर धन्यवाद!
Deleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,सादर नमन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteअंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पे भी कुछ डालो, अरे ओ रोशनी वालों । आपने जो कहा, दुरूस्त कहा यशवंत जी । रूमानियत के परे भी एक दुनिया है जिसे नज़रअंदाज़ करना अपने आप को ही धोखा देना है ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर!
Deleteबहुत सुन्दर कृति।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteआया नहीं बसंत
ReplyDeleteकि बस प्रेम दिखने लगा।
बहुत सुंदर यशवंत जी 👌👌👌फ़ैज़ ने भी लिखा था----------
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के
सादर धन्यवाद!
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर धन्यवाद!
Deleteयहां बहुत कुछ है प्रेम से परे भी..बहुत ही सारगर्भित समसामयिक विषय पर लिखी गई कविता..सुन्दर सृजन..
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