चित्र:काजल सर की फ़ेसबुक वॉल से साभार |
हलक
जब सूखता है
सिर्फ
प्यास दिखती है...
जहाँ से आती हैं
ठंडी हवाएँ
वहीं
एक आस दिखती है...
फिर वह घर
दुश्मन का ही क्यों न हो
अंजुली भर जीवन की
हर लहर खास दिखती है...
प्यास,
प्यास ही होती है
सूखती देह को तो
हर बाकी
श्वास दिखती है..
लेकिन अब,
आधुनिक भारत के लोगों की
कमजोर नज़रों से
सारी दुनिया
'विश्व गुरु' के मूल्यों का
ह्रास देखती है।
14032021
हम भारतीय ही स्वयं का मज़ाक उड़ाते हैं , क्या कहें ,
ReplyDeleteगंभीर लेखन
बहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजो विश्वगुरु बनने की क्षमता रखता है, कभी रख सका है या कभी रख सकेगा वह भारत के अलावा कोई हो ही नहीं सकता, सनातन धर्म की नींव यहीं रखी गयी थी, भले ही उस पर कितनी परत पड़ गई हो, सार्थक लेखन !
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