सच
सिर्फ वही नहीं होता
जिसे हम देखते हैं
या
जो हमें दिखाया जाता है
सच
कभी-कभी छिपा होता है
घने अंधेरे की
कई तहों के भीतर
जिसे कुरेदना
आसान नहीं होता
और फिर भी
शंकावान होकर
गर कोई दिखाना चाहे भी
तो उसे कर दिया जाता है किनारे
पागल-सनकी और न जाने
क्या-क्या कहकर
इसके बाद भी
कई युगों के बाद
सच से
साक्षात्कार का समय आने तक
हम देख चुके होते हैं
विध्वंस के कई दौर
इसलिए
बेहतर सिर्फ यही है
कि हम सुनें
उन चेतना भरी आवाजों को
जिन्हें दबा दिया जाता है
हर तरफ उठ रही
आग की लपटों
और
बेहिसाब शोर में।
01052021
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसही है, सच को उजागर करना ही चाहिए और चाहे इसे कितना ही दबा दिया जाये सच को सदा के लिए छिपाया नहीं जा सकता
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने यशवंत जी,सार्थक सृजन।
ReplyDeleteकोई भी सच अनंतकाल तक छुपा नहीं रह सकता, कहा तो ऐसा ही जाता है। और चेतना के स्वरों को सुनने में ही हमारा कल्याण है चाहे उन्हें मिथ्या प्रचार के शोर में दबा देने के कितने ही प्रयास क्यों न किए जा रहे हों।
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