12 May 2021

लॉकडाउन

मिले दवा  न मिले दवा 
वो गुरबत से दबा दबा 
खुली छत के कमरे में 
बंद पलकों में है दुआ 

उसके बच्चे भूखे-प्यासे 
माँ के आँसू पी-पी कर 
पिता की ताला-बंदी में 
रहना कठिन यूँ जी कर  

ककहरा को भूल काल 
अब क्या लिख लाया है 
हर पन्ने पर एक हर्फ़ ही 
कुछ समझ न आया है । 

-यशवन्त माथुर©
12052021

9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-05-2021को चर्चा – 4,064 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. सबकुछ धुआँ धुआँ, जिंदगी क्या है समझ से परे होता जा रहा है आजकल

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  3. उत्कृष्ट रचना

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. सार्थक अभिव्यक्ति

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  7. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

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  8. वर्तमान समय की विभीषिका को चन्द शब्दों में बयान कर दिया है, कभी तो अंत होगा इस आपदा का, इसी उम्मीद पर दुनिया जिए चली जाती है

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  9. समसामयिक,मर्म स्पर्शी सृजन ।

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