इसके पहले कैसा था
इसके पहले ऐसा था
वैसा था, जैसा था
थोड़ा था
लेकिन पैसा था।
इसके पहले थे
अच्छे दिन
कटते नहीं थे
यूँ गिन-गिन।
इसके पहले दाना था
दो वक़्त का खाना था
खुली सड़क पर
हर गरीब का
यूँ ही आना-जाना था।
लेकिन अब-
अब बदल गया है ज़माना
रुक गया है आना-जाना
बड़ी मुश्किल में पीना-खाना
सुबह-शाम चूल्हा जलाना।
इंसान से महंगा हो गया तेल
पास सभी हैं कोई ना फेल
रुपये से डॉलर ऐंठ कर कहता
'उसकी' करनी अब तू झेल।
04062021
सुंदर रचना
ReplyDeleteसही कहा जमाना तो हद तक बदल गया पहले और अब का फेर बहुत अच्छे से समझाया आपने...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
वाह!!!
बहुत सही तस्वीर आज की।
ReplyDeleteअभिनव भाव सृजन।
विलंब से आने हेतु क्षमाप्रार्थी हूं यशवंत जी। आपने एक-एक शब्द सच कहा है। आशा है, सकुशल होंगे।
ReplyDeleteआज के हालात का सटीक चित्रण !
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