22 September 2021

साधारण ही हूँ

हाँ 
साधारण ही हूँ 
यह जानकर 
और मान कर भी 
कि मेरे सम वयस्क 
हर एक मायने में 
निकल चुके हैं 
मुझसे कहीं आगे 
और मैं 
अब भी 
वहीं खड़ा हूँ 
अपने सीमित शब्दकोश की 
असीमित देहरी के भीतर 
जहां 
कल्पना का खाद-पानी पा कर
अंकुरित होती बातें 
अविकसित या 
अल्पविकसित ही रह कर 
पूर्ण हो ही नहीं पातीं 
क्योंकि मैं जानता हूँ 
अपने शाब्दिक कुपोषण का कारण 
क्योंकि मैं जानता हूँ 
मैं हूँ ही साधारण 
फिर भी नहीं छोड़ पाता मोह 
खुद से खुद के मन की कहने का 
धारा के विपरीत 
कुछ तो बहने का। 

-यशवन्त माथुर©
14072021

11 comments:

  1. आपकी इन भावनाओं को बाख़ूबी समझा मैंने यशवंत जी।

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  2. हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. मर्मस्पर्शी रचना ।

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  5. सुंदर रचना

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  6. अत्यंत मार्मिक और हृदय स्पर्शी रचना!

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  7. कोई कहीं भी पहुँच जाए अनंत सदा उसके आगे हैं और पीछे भी, यहाँ तुलना की बात ही बेमानी है, अपने भीतर जाकर जिसने भी देखा है अनंत से ही टकराया है, इसलिए आगे-पीछे, छोटा-बड़ा केवल शब्द हैं, हर कोई उस अनंत का ही एक अंश है

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  8. धारा के विपरीत बहने वालों को भले ही मुख्य धारा में बहने वाले न समझ पाएं, लेकिन एक दिन ऐसा जरूर आता है जब उनके पहचानने-जानने वालों की सबसे बड़ी भीड़ होती है


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