ख्याल भी ऐसे ही होते हैं
जज़्बात भी ऐसे ही होते हैं
आसमान में उड़ते
जहाज़ की तरह
कभी नापते हैं
सोच, ख्यालों और
उद्गारों की
अनंत ऊंचाई को
और कभी
धीरे-धीरे
अपनी सतह पर
वापस आकर
तैयार होने लगते हैं
फिर एक
नई मंजिल की ओर
एक नई परवाज के लिए।
यह चक्र
असीम है
देश,काल
और वातावरण के
बंधनों से मुक्त
हमारे विचार
यूं ही
तैरते-तैरते
या तो तर जाते हैं
या भटकते ही रह जाते हैं
क्षितिज की
परिधि में ही कहीं।
यशवन्त माथुर©
29092021