04 September 2021

इश्तहार हूं....

खुली पलकों के सामने से
गुजर जाया करता हूं
समय के पन्नों से
पलट जाया करता हूं
बावजूद इसके
कि लिखा जाता हूं
अमिट स्याही से
याद रहता हूं कभी
और अक्सर
भुला दिया जाता हूं।
यूं तो
रंगीन तस्वीरें कई हैं
मेरे भीतर
और ढेरों शब्दों का
हमसफर बनकर
पड़ जाता हूं
किसी कोने में
धूल फांकने को..
या कि किसी ढेर में
जला दिया जाता हूं।
मैं इश्तहार हूं!
जज़्बात मुझमें कहीं भी नहीं
हूं इश्क ऐसा कि
दिलों तक
पहुंच ही जाता हूं।

-यशवन्त माथुर©
04092021

3 comments:

  1. प्रभावशाली लेखन, जज्बात के बिना इश्क भला हो सकता है क्या, इश्क भी तो एक जज्बात है.

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