ख्याल भी ऐसे ही होते हैं
जज़्बात भी ऐसे ही होते हैं
आसमान में उड़ते
जहाज़ की तरह
कभी नापते हैं
सोच, ख्यालों और
उद्गारों की
अनंत ऊंचाई को
और कभी
धीरे-धीरे
अपनी सतह पर
वापस आकर
तैयार होने लगते हैं
फिर एक
नई मंजिल की ओर
एक नई परवाज के लिए।
यह चक्र
असीम है
देश,काल
और वातावरण के
बंधनों से मुक्त
हमारे विचार
यूं ही
तैरते-तैरते
या तो तर जाते हैं
या भटकते ही रह जाते हैं
क्षितिज की
परिधि में ही कहीं।
यशवन्त माथुर©
29092021
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 30.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
ख़्यालों की ज़मी की उर्वरता
ReplyDeleteपरिस्थितियों की नमी पर
निर्भर है।
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बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन,
अंतिम पंक्तियां विशेष अच्छी लगी।
सादर।
सच कहा यशवंत जी आपने।
ReplyDeleteवाह! विचारों की सुंदर उड़ान
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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