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16 October 2021

अक्स देखता हूं....

एक अक्स देखता हूं
बादलों में कहीं
गुमनाम हो चुका
एक शख्स देखता हूं
डूबते सूरज के साथ
आसमां में खोते हुए
सुबह फिर मिलेंगे
कहते हुए
यह उसका भरोसा है
और मेरे अंदर का डर
बनते अंधेरे में उसको
सवेरा सोचता हूं..
बादलों में कहीं
एक अक्स देखता हूं।

-यशवन्त माथुर©
16102021

2 comments:

  1. अंधेरे के बाद ही सवेरा होता है और हर सवेरा शाम में ढल जाता है, गहरी बात

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  2. बहुत गूढ़ बात कही है आपने यशवन्त जी।

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