कोई अपना नहीं सब पराए से हैं।
अपनी खुशियों में भरमाए से हैं।
जब वक्त था कुछ करने का, मुकर गए।
अब न जाने क्यों कुलबुलाए से हैं।
उनकी खूबियों को बाखूबी जान लिया था हमने।
याद पीछे की दिलाई तो अब शरमाए से हैं।
चाहते हैं जानना कि पता, अपना हम बता दें उनको।
लेकिन लगता नहीं कि करनी पर पछताए से हैं।
-यशवन्त माथुर©
18102021
आपकी अभिव्यक्ति से जुड़ाव अनुभव कर रहा हूँ। लग रहा है जैसे मेरे ही मन की बात है।
ReplyDeleteउस एक के नाते ही सब अपने हैं वरना तो सबके अपने अपने सपने हैं
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteसुंदर सृजन
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