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19 December 2021
कंक्रीट की सभ्यता
17 December 2021
वर्तमान समय में शिक्षा की उपयोगिता
08 December 2021
कुछ लोग-55
26 November 2021
ऐसे ही नहीं कोई मजदूर होता है
तसला भर सपनों को
रोज़ सर पे ढोता है
ऐसे ही नहीं
कोई मजदूर होता है।
झोला भर जिंदगी उससे
क्या कुछ नहीं कराती
परदेसियों की बातें
क्या-कुछ नहीं दिखातीं।
दूसरों के मखमल सजा कर
खुद ज़मीन पे सोता है
ऐसे ही नहीं
कोई मजदूर होता है।
हर शाम बातें करता है
सिरहाने की ईंट से
मौत रेंगकर निकलती है
अक्सर उसके करीब से।
ख्यालों की पाड़ लगाकर
हर महल से ऊंचा होता है
ऐसे ही नहीं
कोई मजदूर होता है।
25 November 2021
गर कुछ लिखा न जा सका....
गहराती रात के साथ
शब्द भी खो जाते हैं
कहीं गहरी नींद में
अक्षर भी सो जाते हैं ...
जो दिन में
मन के कहीं भीतर उभर कर
सफर तय करते हैं
होठों से उंगलियों में जकड़ी
कलम तक का
लेकिन शाम होते होते
कागज की देहरी पर
विस्मृत हो जाते हैं..
विलुप्त हो जाते हैं..
क्योंकि अंधेरे की आहट पाकर
अवचेतन ओढ़ लेता है
आलस्य की लंबी चादर
और फिर
अर्द्ध मूर्च्छा में
रह जाता है
इंतजार
सिर्फ उस सुबह का
जिसमें
गर कुछ लिखा न जा सका
तो फिर से चलने लगता है
कटु सत्य की धुरी पर
समय का वही चक्र।
-यशवन्त माथुर©
24112021
22 November 2021
सफर अभी जारी है...
अंतहीन राहों से
गुजरते हुए
कुछ गिरते हुए
कुछ संभलते हुए
सफर अभी जारी है।
समय चक्र में मिलते हैं
कुछ फूल भी
काँटे भी
होती हैं पत्थरों से
दिल की कुछ बातें भी।
इस बिसात पर
वजूद को तलाशते हुए
कभी शह,
कभी मात खाते हुए
सफर अभी जारी है।
अक्सर निहारता हूं
कंक्रीट की इमारतों के शिखर से
उगता हुआ सूरज..
फिर शाम की उदासी में
कहीं ढलता हुआ सूरज..
यूं करने को कुछ है तो नहीं
फिर भी लगता कि कुछ
अभी बाकी है
सफर अभी जारी है।
07 November 2021
अभी बाकी है....
ढल गया एक दिन ऐसे ही, तो क्या हुआ,
फिर एक रोशन दिन की, उम्मीद अभी बाकी है।
उदासियों के बादल भी छंट कर बरसेंगे कभी तो,
सोंधी खुशबू मिट्टी की, उठनी अभी बाकी है।
ख्यालों का क्या है, आते जाते ही रहते हैं,
गर ठहरे शब्द, तो पन्नों पर, उतरना अभी बाकी है।
.
-यशवन्त माथुर©
06112021
04 November 2021
दीप जलते रहें....
मन मिलते रहें,
चेहरे खिलते रहें,
दीप जलते रहें।
प्रवास से लौटकर,
विचार के प्रवाह में,
दिशाएं भी कुछ कहें,
दीप जलते रहें।
क्रांति के मार्ग पर,
शांति के गीतों में,
एक होके सब बहें,
दीप जलते रहें।
उदय की कथा तो हो,
अस्त की व्यथा न हो,
शामें जब ढलती रहें,
दीप जलते रहें।
31 October 2021
बैलेट सबक सिखाएगा
पेट्रोल महंगा, डीजल महंगा
और महंगी है गैस।
कर्जा लेकर अमीर भागता
जनता भरती टैक्स।
जनता भरती टैक्स
सुनो सरकार बहादर
देश चलाते हो तुम
हिंदू-मुस्लिम कराकर।
अब भी वक्त है, संभलो! वरना
जब इलेक्शन आएगा
लाख चलाना बुलेट
तुमको बैलेट सबक सिखाएगा।
18 October 2021
कोई अपना नहीं......
कोई अपना नहीं सब पराए से हैं।
अपनी खुशियों में भरमाए से हैं।
जब वक्त था कुछ करने का, मुकर गए।
अब न जाने क्यों कुलबुलाए से हैं।
उनकी खूबियों को बाखूबी जान लिया था हमने।
याद पीछे की दिलाई तो अब शरमाए से हैं।
चाहते हैं जानना कि पता, अपना हम बता दें उनको।
लेकिन लगता नहीं कि करनी पर पछताए से हैं।
-यशवन्त माथुर©
18102021
16 October 2021
अक्स देखता हूं....
09 October 2021
भक्त कौन?
29 September 2021
ख्याल....
ख्याल भी ऐसे ही होते हैं
जज़्बात भी ऐसे ही होते हैं
आसमान में उड़ते
जहाज़ की तरह
कभी नापते हैं
सोच, ख्यालों और
उद्गारों की
अनंत ऊंचाई को
और कभी
धीरे-धीरे
अपनी सतह पर
वापस आकर
तैयार होने लगते हैं
फिर एक
नई मंजिल की ओर
एक नई परवाज के लिए।
यह चक्र
असीम है
देश,काल
और वातावरण के
बंधनों से मुक्त
हमारे विचार
यूं ही
तैरते-तैरते
या तो तर जाते हैं
या भटकते ही रह जाते हैं
क्षितिज की
परिधि में ही कहीं।
यशवन्त माथुर©
29092021
22 September 2021
साधारण ही हूँ
09 September 2021
ताला और जिंदगी
जिन्दगी
हो जाती है
जंग लगे
ताले की तरह
जिसके खुलने से
कहीं ज्यादा
मुश्किल होता है
उसे
दोबारा
पहले जैसा
बंद करना।
ठीक ऐसे ही
वक्त की कब्र में
भीतर तक दबे राज़
खुद खुद कर
जब आने लगते हैं सामने
तब नामुमकिन ही होता है
उसे पहले की तरह
पाटना और समतल करना
क्योंकि
बदलाव के नए दस्तूर
और ऊबड़ खाबड़ पाखंड
मिलने नहीं देते
श्वासों के चुनिंदा
अवशेषों को
स्मृतियों की
दो गज जमीन।
04 September 2021
इश्तहार हूं....
खुली पलकों के सामने से
गुजर जाया करता हूं
समय के पन्नों से
पलट जाया करता हूं
बावजूद इसके
कि लिखा जाता हूं
अमिट स्याही से
याद रहता हूं कभी
और अक्सर
भुला दिया जाता हूं।
यूं तो
रंगीन तस्वीरें कई हैं
मेरे भीतर
और ढेरों शब्दों का
हमसफर बनकर
पड़ जाता हूं
किसी कोने में
धूल फांकने को..
या कि किसी ढेर में
जला दिया जाता हूं।
मैं इश्तहार हूं!
जज़्बात मुझमें कहीं भी नहीं
हूं इश्क ऐसा कि
दिलों तक
पहुंच ही जाता हूं।
29 August 2021
खुशियाँ उनको मिलती हैं....
04 June 2021
तब और अब
03 June 2021
एक तूफाँ हूँ......
23 May 2021
बादल
Image:Yashwant Mathur© |
ऊंची इमारतों की छतों को
छूकर निकलने वाला
बादलों का हर एक टुकड़ा
स्पीड ब्रेकर की तरह
बीच राह में आने वाली
टहनियों
और इक्का दुक्का पत्तियों से
बची खुची सांसों का हाल
पूछता हुआ
निकल लेता है
सूखी पथरीली
रेतीली धरती पर
बरसने को
जिसकी तह में
हरी घास की जड़ें नहीं
अब मिलते हैं
सिर्फ
विलुप्त होती
सभ्यता के अवशेष।
22 May 2021
Rain drops and few other pics
Camera: Canon Sx740hs
21 May 2021
महामारी के बीच लोगों पर एक और वार:मधुरेन्द्र सिन्हा
19 May 2021
बेमौसम......
बेमौसम में भीग रहीं, फसलें बेईमान।
बेमौसम बीमारी में, फंसी हुई है जान।
बेमौसम क्या करूं,अपने मन की बात।
बेमौसम दिन है ऐसा, जैसे गहरी रात।
18 May 2021
कोविड के इस असर की तो बात ही नहीं हो रही: जयंती लाल भंडारी
12 May 2021
लॉकडाउन
07 May 2021
सबकी सुनता जाऊंगा.........
नहीं पता कहाँ पर मंज़िल
कब तक चलते जाना है ?
कितने कदम बढ़ चुका अब तक
और कितना थकते जाना है ?
अपनी हदों के भीतर से
क्या बाहर कभी आ पाऊँगा ?
या निर्जीव दीवार के जैसे
सबकी सुनता जाऊंगा?
-यशवन्त माथुर©
29/01/2019
04 May 2021
जाने क्या काल ने ठाना है?
01 May 2021
सच तो सामने आएगा ही
22 April 2021
वक़्त के कत्लखाने में-22
28 March 2021
तो कितना अच्छा हो
27 March 2021
चांदी के वर्क से व्यंजनों की खूबसूरत सजावट: डॉक्टर कृपा शंकर माथुर
(दैनिक 'नवजीवन'-22 सितंबर 1977, पृष्ठ-04) |
19 March 2021
'राष्ट्रसंघ - एक बंधुआ विश्व संस्था' : श्री बी.डी.एस. गौतम (पुरानी कतरनों से, भाग-2)
(अमर उजाला, आगरा में 18 फरवरी 1991 को प्रकाशित) |
वक़्त के कत्लखाने में-21
17 March 2021
भारतीय संस्कृति का मूलतत्व : श्री हरिदत्त शर्मा (पुरानी कतरनों से, भाग-1)
जिसकी विशिष्टता विदेशियों ने भी स्वीकार की
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व
-श्री हरिदत्त शर्मा
(समाचार संपादक -नवभारत टाईम्स)
-श्री हरिदत्त शर्मा
(समाचार संपादक -नवभारत टाईम्स)